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ऊपर वाले की लाठी

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एक सत्य घटना

ऊपरवाले की लाठी

विगत 80 वर्षों से हमारे और अग्रवाल जी के परिवारक मित्रता के संबंध रहे है। इनके पास पीढ़ियों से अखुट धन संपदा रही है।

मूलतः इनका खानदानी व्यवसाय ब्याज पर धन देना था। इसके एवज में ये लोग मकान/दुकान/जेवर आदि गिरवी रखवा लिया करते थे। 20 सालो से ये सिविल कॉन्ट्रेक्टर थे हमारे शहर में।

ये वो भैया थे जो करीब 8–10 साल से हमारे घर नही पधारे थे और इनके व्यवहार में घमंड की अति रहती थी। मुझे बहुत हैरानी हो रही थी कि आज, यह हमारे घर पर कैसे।?

वे जैसे ही घर से गये, मैं माँ से पूछ बैठा: “माँ! सब कुशल मंगल तो है ना!! ये भैया आज अपने यहाँ इतनी सुबह किसलिए आये जो कभी सीधे मुँह बात तक नही करते थे?”

माँ ने बताया,” अग्रवाल जी, पिछले पाँच सालों में शेयर बाज़ार में बुरी तरह बर्बाद हुए और करीब 20 करोड़ रुपये स्वाहा हो गए। नगर निगम के जो कॉन्ट्रैक्ट लिए और पूरा किया, उस काम का भुगतान कमिश्नर ने रोक दिया जिससे इनको और बड़ा झटका लगा। कामों को पूरा करने के लिए इतने बड़े सेठ को बाज़ार से सूदखोरों से रुपये 40 लाख लेने पड़े। और अब वो 40 लाख रुपये ब्याज बढ़ते बढ़ते 70 लाख हो गए है। इनके पास खाने के पैसे भी नही बचे है और इसीलिए ये अपना आलीशान बंगला (जो इंदौर की सबसे धनवान बस्ती में है) बेच रहे है!

मुझे एक झटका सा लगा।

माँ ने बताया:,”आज से करीब 50 साल पहले एक गरीब बूढ़ी महिला ने बड़े अग्रवाल जी से 40 रुपये उधार लिए थे और उसके एवज में अपनी चांदी की मोटी पायल, झुमके, चैन आदि इनके पास गिरवी रख दी थी।

वो बूढ़ी माँ ने खून पसीना एक करके तीन चार सालों में 40 रुपये ब्याज चुका भी दिए, लेकिन ये अग्रवाल जी के मन मे चोर समा गया। ये उसको झूठे हिसाब किताब बताकर जबरन ब्याज बढ़ाते रहे और उसके जेवर देने से साफ मना कर दिया।

कुछ महीनों के संघर्ष के बाद वो बूढ़ी माँ थक गई!

हमारा निवास पास ही मे था और मैं भी नई नई शादी करके आयी थी तेरे पापा के साथ। उस दिन वो बूढ़ी माँ अग्रवाल जी के घर के बाहर आई और फुट फुट के रोई।

रोते रोते बस एक बात बोल रही थी,“जा तेरा सर्वनाश होगा! मेरे 40 रुपये तेरे कण कण से निकलेंगे! नही चाहिए मेरे को मेरे जेवर! तू रख अब! तेरी तबाही का कारण होंगे मेरे ये जेवर!”

और दो दिन में वो बूढ़ी अम्मा इस दुनिया से चल बसी!

वो 40 रुपये थे जो आज पचास सालो में 40 लाख मूलधन + 30 लाख ब्याज होकर 70 लाख हो गए है।

इन 70 लाख की वजह से अग्रवाल जी की जीते जी मरने वाली हालात हो गयी है बेटा!

मैं यह सब सुनकर अवाक सा रह गया!
सुना था आजतक की ऊपरवाले की लाठी में आवाज़ नही होती, मगर आज प्रत्यक्ष था मेरे सामने सब कुछ।

मैं हाथ जोड़कर भगवान् के आगे खड़ा हो गया कि हे प्रभु,”मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं केवल सत्य के मार्ग पर ही चलता रहूँ।

सच में , न्याय है ऊपरवाले की अदालत में!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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