lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई”

#पर हित सरिस धर्म नहिं भाई" #रामचरितमानस #शिक्षक #ट्यूमर (गाँठ) #सत्संगी #ऑपरेशन #परमात्मा #परोपकार #गुरु #सत्कर्म #आत्मसन्तोष, #आत्मतृप्ति #जय श्रीराम

273Views

एक शिक्षक के पेट में ट्यूमर (गाँठ) हो गया । उन्हें अस्पताल में भर्ती कर दिया गया । अगले दिन ऑपरेशन होना था । वे जिस वॉर्ड में थे उसमें एक रोगी की मृत्यु हुई । उसकी पत्नी विलाप करने लगी – “अब मैं क्या करूँ, इनको कैसे गाँव ले जाऊँ ? मेरे पास पैसे भी नहीं हैं ! कैसे इनका क्रियाकर्म होगा” ?  शिक्षक सत्संगी थे । उनको अपने दर्द से ज्यादा उसका विलाप पीड़ा दे रहा था । उनसे रहा नहीं गया । उन्होंने अपनी चिकित्सा के लिए रखे सारे रुपये उस स्त्री को दे दिये और कहा – ‘‘बहन ! जो हो गया सो हो गया, अब तुम रोओ मत । ये रुपये लो और अपने गाँव जाकर पति का अन्तिम संस्कार करवाओ” ।

रात में शिक्षक का दर्द बढ़ गया और उन्हें जोर से उलटी हुई। नर्स ने सफाई करायी और दवा देकर सुला दिया । सुबह उन्हें ऑपरेशन के लिए ले जाया गया । डॉक्टर ने जाँच की तो दंग रह गया – ‘‘रातभर में इनके पेट का ट्यूमर कहाँ गायब हो गया”! नर्स ने बताया – ‘‘इन्हें रात में बड़े जोर की उलटी हुई थी । उसमें काफी खून भी निकला था” । डॉक्टर बोला – ‘‘उसी में इनका ट्यूमर निकल गया है । अब ये बिल्कुल ठीक हैं । ऑपरेशन की जरूरत नहीं है” ।

“रामचरितमानस” में आता है – पर हित सरिस धर्म नहिं भाई”

“परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है”। तुम दूसरे का जितना भला चाहोगे उतना तुम्हारा मंगल होगा । जरूरी नहीं कि जिसका तुमने सहयोग किया वही बदले में तुम्हारी सहायता करे । गुरु-तत्व व परमात्मा सर्वव्यापी सत्ता वाले हैं । वे किसी के द्वारा कभी भी दे सकते हैं । परोपकार का बाहरी फल उसी समय मिले या बाद में, ब्रह्मज्ञानी गुरु के सत्संगी साधक को तो सत्कर्म करते समय ही भीतर में आत्मसन्तोष, आत्मतृप्ति का फल प्राप्त हो जाता है।

परमसेवा से जुडे। यह परोपकार का भाव जीव मात्र के कल्याण के लिए है..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

Leave a Reply