lalittripathi@rediffmail.com
Quotes

भरोसा

264Views

भरोसा

कल दोपहर घर के सामने छोटे से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मैं मोबाइल पर बात कर रहा था।
पेड़ की दूसरी तरफ एक गाय बछड़े का जोड़ा बैठा सुस्ता रहा था और जुगाली भी कर रहा था । उतने में एक सब्जी वाला पुकार लगाता हुआ आया ।
उसकी आवाज़ पर गाय के कान खड़े हुए और उसने सब्जी विक्रेता की तरफ देखा।
तभी पड़ोस से एक महिला आयी और सब्जियाँ खरीदने लगी ।
अंत में मुफ्त में धनियाँ, मिर्ची न देने पर उसने सब्जियाँ वापस कर दी ।

महिला के जाने के बाद सब्जी विक्रेता ने पालक के दो बंडल खोले और गाय बछड़े के सामने डाल दिए…

मुझे हैरत हुई और जिज्ञासावश उसके ठेले के पास गया । खीरे खरीदे और पैसे देते हुए उससे पूछा कि उसने 5 रुपये की धनियां मिर्ची के पीछे लगभग 50 रुपये के मूल्य की सब्जियों की बिक्री की हानि क्यों की ?
उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – भइया जी, यह इनका रोज़ का काम है । 1-2 रुपये के प्रॉफिट पर सब्जी बेच रहा हूँ । इस पर भी फ्री .. न न न ।
मैंने कहा – तो गइया के सामने 2 बंडल पालक क्यों बिखेर दिया ?
उसने कहा – फ्री की धनियां मिर्ची के बाद भी यह भरोसा नहीं है कि यह कल मेरी प्रतीक्षा करेंगी किन्तु यह गाय बछड़ा मेरा जरूर इंतज़ार करते हैं और भइयाजी, मैं इनको कभी मायूस भी नहीं करता हूँ।
मेरे ठेले में कुछ न कुछ रहता ही है इनके लिए । मैं इन्हें रोज खिलाता हूँ । अक्सर ये हमको यहाँ पेड़ के नीचे बैठी हुई मिलती हैं।

मुफ्त में उन्हें ही खिलाना चाहिए जो हमारी कद्र करे और जिन्हें हमसे ही अभिलाषा हो।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

2 Comments

Leave a Reply