बहुत लोगों को यह जानने की चेष्टा है कि गणगौर पर्व क्यो मनाते हैं आज इस पोस्ट को पुरा पढें गणगौर के दिन का महत्व ज़रूर पढ़ना – सुनाना कहानी उस राजा की.. जिनके नाम के गीत आज तक राजस्थान के हर घर में गाए जाते हैं ।
यह उस समय की बात है जब हिंदुस्तान पर अफ़ग़ान लुटेरों और सुल्तानों के हमले हो रहे थे । यह वो लोग थे जो धन सम्पत्ति के साथ साथ महिलाओं ख़ासकर हिंदू सुहासनियों को अगवा करना और उन्हें हरम की दासियाँ बनाना अपना जीत का आधार मानते थे । हिंदू लड़कियों को आक्रांताओं द्वारा अगवा करने की घटनायें उन दिनों होती रहती थीं । एक ऐसी ही घटना हुई मौजूदा नागौर ज़िले के पीपाड़ के पास । सन 1492 के मार्च महीने में गणगौर के तीज के दिन गाँव की महिलाएँ एवं बच्चियाँ तीज पूजने गाँव के तालाब के पास इखट्टी हुई थीं । यह सूचना मिलते ही अजमेर का शाही सूबेदार मीर घुड़ले खान वहाँ पहुँच गया और उसने उन सभी 140 सुहासिनियों (कुँवारी कन्याओं ) को अपने क़ब्ज़े में ले लिया और उन्हें अपने हरम की दासियाँ बनाने के उद्देश्य से उन्हें ले कर रवाना हो गया । यह खबर जैसे ही मारवाड़ के शासक राव सातल देव जी को मिली, वह तुरंत मौक़े पर उपस्थित अपनी छोटी सी सेना लेकर मीर घुड़ले खान का पीछा करने लगे । शाम हो चली थी… और क्षत्रिय युद्ध नीति के अनुसार राजपूत सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं करते थे । मंत्रियों ने राव सातल देव जी को युद्ध नीति एवं साथ ही सुबह तक मीर का मुक़ाबला करने लायक़ सेना इखट्टी कर लेने की बात कहकर सुबह तक प्रतीक्षा करने का निवेदन किया ।लेकिन राव सातल देव जी ने अपने मंत्रियों के उस प्रस्ताव को तुरंत ठुकरा दिया । वे जानते थे की अगर उन्होंने सुबह होने तक का इंतज़ार किया, तो यह रात उन 140 कन्याओं के पूरे जीवन को काला कर देगी । उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा की जिन्हें अपने जान की परवाह है वो रुक जाएँ । लेकिन मैं एक पल के लिए भी रुक कर अपने कुल को नहीं लजाऊँगा । मारवाड़ के महान शासक राव सातल देव जी जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी के पुत्र और बीकानेर के संस्थापक राव बीका जी के भाई थे । उन्होंने अपनी छोटी सेना के साथ मीर का पीछा किया और उसे पीपाड़ के थोड़े आगे ही स्थित कोसाणा गाँव पहुँचने से पहले ही रोक लिया ।
कहते हैं राव सातल देव जी को देखते ही घुड़ले खान का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने मारवाड़ के शासक की वीरता के बारे में सुना हुआ था । अपने राजा को देखकर बेड़ियों से बंधी कन्याओं के मुख से भय और निराशा अचानक ग़ायब हो गयी पर उन कन्याओं की दशा और मीर को देखते ही राव सातल देव जी को इतना ग़ुस्सा आया की समझायिश की कोई कोशिश किए बिना उन्होंने मीर और उस की सेना पर आक्रमण कर दिया । ग्रामीण कथाएँ कहती हैं कि मारवाड़ की सेना उन अफ़ग़ानों पर ऐसी टूट पड़ी जैसे भेड़ों के झुंड पर शेर टूट पड़ते हैं । संख्या और हथियारों में बड़ी होने के बावजूद अफ़ग़ान सेना बिखर गयी । मारवाड़ का एक एक वीर 10 – 10 अफ़ग़ानों को यमलोक दिखाकर वीरगति प्राप्त कर रहा था । मीर की अधिकांश सेना मारी गयी और जो बचे वो अपनी जान छुड़ाकर भाग निकले । कहते हैं मीर घुड़ले खान ने इतना भारी सुरक्षा कवच पहन रखा था की कोई भी हथियार उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था । इतने में राव सातल देव ने मीर के कवच और सिर के कवच के बीच गर्दन पर अपनी तलवार से ऐसा वार किया की मीर घुड़ले खान का सिर कटकर शरीर से अलग हो गया । मीर का यह हाल देख कर बचे कुचे अफ़ग़ान सैनिकों ने मारवाड़ की सेना के सामने हथियार डाल दिए । राव सातल देव जी के आदेश पर उनकी सेना ने सभी सुहासिनियों को बेड़ी से आज़ाद कर दिया और सूबेदार मीर घुड़ले खान का सिर उन सुहासिनियों को उनके सतीत्व की रक्षा के सबूत के तौर पर उपहार स्वरूप दे दिया । राव सातल देव जी ने खुद उन सुहासनियों को सुरक्षित उनके गाँव तक पहुँचाया…. पर उस ही रात युद्ध के घावों के कारण उन्होंने वीरगति प्राप्त की । कहते हैं उन सुहासीनियों और गाँव की महिलाओं ने मीर घुड़ले खान के कटे हुए सिर में और छेद कर उसे पूरे गाँव में घुमाया और अपने महान शासक की वीर गाथा सभी को सुनायी । तब से लेकर आज तक मारवाड़ में यह रीत निभाई जाती है । आज के दिन यानी गणगौरी तीज पर सुहासिनियाँ एक घड़ा जिसमें खूब सारे छेद हों, को लेकर ठीक उस ही तरह गाँव भर में घूमती हैं जैसे मीर घुड़ले खान का सिर लेकर घूमीं थीं । वह घड़ा मीर घुड़ला खान के सिर का प्रतीक होता है । घुड़ले को गाँव भर में घुमाते हुए महिलाएँ प्रसिद्ध गीत गातीं हैं “घुड़लो घूमेलो जी घूमेलो
सिंहणी जायो पूत
घुड़लो घूमेलो जी घूमेलो”
आज जब हमारे राजस्थान में बहन बेटियों की आबरू हर दिन लुट रही हो, और रक्षक ही भक्षक बन चुके हों, ऐसी परिस्थिति में हर राजस्थानवासी को अपने अंदर के राव सातल देव जी को जगाने की बहुत ज़रूरत है ..इसी कारण आज यह वीर गाथा आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास किया है । आशा करता हूँ आप को यह प्रयास अच्छा लगेगा🙏🏻😊
बहुत ही प्रेरक कहानी है , वास्तविकता तो यही है कि हमारे हर तीज त्योहार के पीछे कोई ना कोई किस्सा कहानी और हमारे पुरखों का त्याग और बलिदान छिपा है जिसे आज की पीढ़ी को बताने की आवश्यकता है तभी तो वो अपनी इस समृद्ध धरोहर को सहेज पाएंगे , और राजस्थान का तो क्या कहने यहाँ के तो कण कण में बीरता त्याग और बलिदान है । नमन है इन वीरों को और इनकी जन्मदात्री इस धरती माँ को ।
कुसूम मैडम, हमारी सनातन संस्कृति त्यौहारो का देश है और हर एक के पीछे वैज्ञानिक कारण है, हमे अपनी पीढ़ी को इसे बताना है, ताकि जनरेशन to जैनरेशन हमरी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर संभाली जा सके।
यह धरा भगवान और महापुरुषों की जननी है, जिन्होंने ना जाने कितने त्याग और बलिदान दिये है, तभी केसरिया रंग इतना गहरा है।
हमे ऐसे महापुरुषो की कहनी अपनी पीढ़ी को समझानी है। जय श्रीराम