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भगवान का मंगल विधान ( सत्य घटना)—

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भगवान का मंगल विधान ( सत्य घटना)—

पुरानी बात है – कलकत्ते में सर कैलासचन्द्र वसु प्रसिद्ध डॉक्टर हो गये हैं। उनकी माता बीमार थीं।

एक दिन श्रीवसु महोदय ने देखा माता की बीमारी बढ़ गयी है, कब प्राण चले जायँ, कुछ पता नहीं।
रात्रि का समय था। कैलास बाबू ने बड़ी नम्रता के साथ माताजी से पूछा- ‘माँ, तुम्हारे मन में किसी चीज की इच्छा हो तो बताओ,
मैं उसे पूरी कर दूँ।’ माता कुछ देर चुप रहकर बोलीं- ‘बेटा! उस दिन मैंने बम्बई के अंजीर खाये थे। मेरी इच्छा है अंजीर मिल जायँ तो मैं खा लूँ।’

उन दिनों कलकत्ते के बाजार में हरे अंजीर नहीं मिलते थे। बम्बई से मँगाने में समय अपेक्षित था ।
हवाई जहाज थे नहीं। रेल के मार्ग से भी आजकल की अपेक्षा अधिक लगता था। कैलास बाबू बड़े दुखी हो गये – माँ ने अन्तिम समय में एक चीज माँगी और मैं माँ की उस माँग को पूरी नहीं कर सका, इससे बढ़कर मेरे लिये दु:ख की बात और क्या होगी..? पर कुछ भी उपाय नहीं सूझा । रुपयों से मिलने वाली चीज होती तो कोई बात नहीं थी । कलकत्ते या बंगाल में कहीं अंजीर होते नहीं, बाजार में मिलते नहीं।

बम्बई से आने में तीन दिन लगते हैं। टेलीफोन भी नहीं, जो सूचना दे दें। तब तक पता नहीं – माता जी जीवित रहें या नहीं, अथवा जीवित भी रहें तो खा सकें या नहीं। कैलास बाबू निराश होकर पड़ गये और मन-ही-मन रोते हुए कहने लगे— ‘हे भगवन्! क्या मैं इतना अभागा हूँ कि माँ की अन्तिम चाह को पूरी होते नहीं देखूँगा।’

रात के लगभग ग्यारह बजे किसी ने दरवाजा खोलने के लिये बाहर से आवाज दी। डॉक्टर वसु ने समझा, किसी रोगी के यहाँ से बुलावा आया होगा। उनका चित्त बहुत खिन्न था। उन्होंने कह दिया-‘इस समय मैं नहीं जा सकूँगा।’

बाहर खड़े आदमी ने कहा- ‘मैं बुलाने नहीं आया हूँ, एक चीज लेकर आया हूँ-दरवाजा खोलिये।’
दरवाजा खोला गया। सुन्दर टोकरी हाथ में लिये एक दरवान ने भीतर आकर कहा-‘डॉक्टर साहब! हमारे बाबूजी अभी बम्बई से आये हैं, वे सबेरे ही रंगून चले जायँगे, उन्होंने यह अंजीर की टोकरी भेजी है, वे बम्बई से लाये हैं। मुझसे कहा है कि मैं सबेरे चला जाऊँगा अभी अंजीर दे आओ ।

इसीलिये मैं अभी लेकर आ गया।
कष्ट के लिये क्षमा कीजियेगा ।’ कैलास बाबू अंजीर का नाम सुनते ही उछल पड़े। उन्हें उस समय कितना और कैसा अभूतपूर्व आनन्द हुआ, इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। उनकी आँखों में हर्षके आँसू आ गये, शरीर में आनन्द से रोमांच हो आया। अंजीर की टोकरी को लेकर वे माताजी के पास पहुँचे और बोले—‘माँ! लो – भगवान् ने अंजीर तुम्हारे लिये भेजे हैं।’

उस समय माता का प्रसन्न मुख देखकर कैलास बाबू इतने प्रसन्न हुए, मानो उन्हें जीवन का परम दुर्लभ महान् फल प्राप्त हो गया हो । बात यह थी, एक गुजराती सज्जन, जिनका फार्म कलकत्ते और रंगून में भी था, डॉक्टर कैलास बाबू के बड़े प्रेमी थे। वे जब-जब बम्बई से आते, तब अंजीर लाया करते थे। भगवान्‌ के मंगल विधान का आश्चर्य देखिये, कैलास बाबू की मरणासन्न माता आज रात को अंजीर चाहती है और उसकी चाह को पूर्ण करने की व्यवस्था बम्बई में चार दिन पहले ही हो जाती है और ठीक समय पर में अंजीर कलकत्ते उनके पास आ पहुँचते हैं! एक दिन पीछे भी नहीं, पहले भी नहीं।

शिक्षा-: परमात्मा जिसको जो चीज देना चाहते हैं उसके लिए किसी न किसी को निमित्त बना ही देते हैं। इसलिए यदि कभी किसी की मदद करने को मिल जाये तो अहंकार न कीजियेगा। बस इतना समझ लीजियेगा कि परमात्मा आपको निमित्त बनाकर किसी की सहायता करना चाह रहे हैं।इसका अर्थ ये हुआ कि हम सभी परमात्मा की नजर में हैं।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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