
पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें वर्तमान जन्म में माता-पिता, भाई-बहन,पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका,मित्र-शत्रु,सगे-संबंधी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते- नाते हैं,सब मिलते हैं…क्योंकि इन सबको,हमें या तो कुछ देना होता है या कुछ लेना होता है…हम सभी अपने संचित ऋण को चुकाने के लिए ही इस नश्वर जगत में आपस मे जुड़ते हैं…अगर हमको किसी रिश्ते से दुःख मिल रहा हो,तो बिना शिकायत उसको निभा लेना ही श्रेयस्कर है अन्यथा कहीं ऐसा ना हो अपने लेन-देन के खाते को शून्य करने के फ़ेर में,हमें कई जन्मों तक इस संसार के दुःख भोगने पड़ें…ठीक इसी तरह किसी को दिया हुआ कर्ज वापस न मिलने पर भी विनम्र हृदय इस बात का संतोष कर लेते हैं कि क्या पता किसी जन्म का ऋण चुक रहा हो
इसलिये हमारी कोशिश सदैव देने की होनी चाहिए…यही वह मंत्र है जो हमें हमेशा शांति और सुकून से सराबोर रखेगा…आज अपने प्रभु से जीवन के हर रिश्ते में देने की भावना को हर हाल में अटूट रखने की अलौकिक प्रार्थना के साथ…
जय श्रीराम