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कृष्ण- अर्जून की मित्रता

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कर्ण और अर्जुन का घमासान युद्ध हो रहा है। कर्ण और शल्य की बातें सुनकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि ‘यदि कर्ण मुझे मार डाले तो आप क्या करेंगे ?’ भगवान् ने हँस कर अर्जुन से कहा-

“चाहे सूर्य टूटकर गिर पड़े, समुद्र सूख जाय, अग्नि शीतल हो जाय, परंतु कर्ण तुझे नहीं मार सकता और यदि किसी प्रकार ऐसा हो ही जाय तो संसार उलट जायेगा और मैं अपने बाहुओं से कर्ण और शल्य को मार डालूंगा।’

कर्ण ने अर्जुन को मारने के लिये एक सर्पमुख बाण बहुत दिनों से सँभालकर रख छोड़ा था, वह बाण महाभयानक, अति तीक्ष्ण, जलता हुआ तथा बड़ा ही प्रभावशाली था। कर्ण के उस बाण को चढ़ाते ही दिशाओं में और आकाश में आग-सी लग गयी। सैकड़ों तारे दिन में ही टूट-टूटकर गिरने लगे। इन्द्रसहित लोकपालगण हाहाकार करने लगे।खाण्डव-वनदाह के समय अर्जुन का वैरी अश्वसेन नामक एक महाविषधर सर्प भी वैर निकालने के लिये उस बाण में घुस बैठा।

कर्ण ने अर्जुन के मस्तक को ताककर बड़ी ही फुर्ती से बाण छोड़ दिया; परंतु भगवान् ने उससे भी अधिक फुर्ती से बाण के अर्जुन के रथ तक पहुँचने के पहले ही अर्जुन के बड़े भारी रथ को एकदम पैरे से दबाकर पृथ्वी में फँसा दिया। चारों घोड़े घुटने टेक कर जमीन पर बैठ गये। बाण आया, परंतु अर्जुन के मस्तक में नहीं लग सका। कर्ण ने बड़े उत्साह और उद्योग से अव्यर्थ सर्पबाण मारा था, परंतु रथ नीचा हो जाने से वह व्यर्थ हो गया। बाण इन्द्र के दिये हुए अर्जुन के दिव्य मुकुट में लगा, जिससे वह मुकुट पृथ्वी पर गिरकर जल गया। भगवान् ने अर्जुन को सचेत करके उड़ते हुए अश्वसेन नाग को भी मरवा डाला। यों बड़े भारी मृत्यु-प्रसंग में अर्जुन की रक्षा हुई।

शिक्षा:-कृष्ण जैसे मित्र मेंटोर एवं गाइड साथ हो तो मृत्यू को भी हरा सकते है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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