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प्रभु प्रसाद

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   हमारे पास स्वयं का कुछ भी नहीं है। जो है, जितना है सब उस प्रभु का है। प्रभु लक्ष्मी पति हैं अर्थात हमारी संपत्ति के वास्तविक  स्वामी सच्चे पति तो स्वयं भगवान नारायण ही हैं।

  “संपति सब रघुपति कै आही”

प्रभु देते भी बहुत हैं मगर जब लेते हैं तो राजा बलि की तरह सब कुछ ले लेते हैं। इसलिए अपनी संपत्ति को सदा सेवा और परमार्थ में लगाना ही बुद्धिमानी है।संपत्ति का उपयोग हो, उपभोग हो मगर कभी भी दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। मुझे जो मिला और जितना मिला है, सब मेरे प्रभु का प्रसाद है। प्रसाद का अनादर एवं दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

लक्ष्मी सदैव नारायण के पास ही खुश रहती है। इसलिए अगर उस प्रभु ने आपको खूब सारी लक्ष्मी देकर अनुग्रहीत किया है तो उस लक्ष्मी का उपयोग सदैव दैवीय कार्यों में ही करना चाहिए।

शिक्षा:- धन कमाना वही सार्थक है जो प्रभु कार्यों में काम आए। जो लक्ष्मी प्रभु कार्यों में लगाई जाती है वही लक्ष्मी आपको प्रभु के द्वार तक भी ले जाती है..।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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