राधा-कृष्ण
जब कृष्ण वृंदावन छोड़ कर मथुरा की तरफ प्रस्थान करने लगे तो राधा से अंतिम विदा लेने यमुना के घाट पर पहुंचे…!
जहां राधे अपने पैर यमुना की लहरों में भिगोए कृष्ण की ही प्रतीक्षा कर रही थीं।जबसे उन्होंने कृष्ण का मथुरा जाने का मंतव्य जाना था तभी से राधे का मन व्याकुल था।
कृष्ण आए और राधा के पास बैठ घंटो सांत्वना और वापस वृंदावन लौट आने के बहाने गिनाये। आखिर विदा लेने का समय आ गया! कैसे कहूं? क्या कहूं? इन तमाम उलझनों के मध्य कई वादे कृष्ण से राधे ने लिए और कृष्ण ने राधे को किए।
पता है उस दिन कृष्ण ने राधा से किस एक प्रतिज्ञा की मांग थी?
उन्होंने कहा की, “राधे मैं चाहता हूं तुम प्रतिज्ञा करो की मेरे मथुरा जाने के बाद तुम्हारे एक भी आंसू ना गिरें क्यूंकि तुम्हारे आंसू मुझे मेरे कर्तव्य पथ से विचलित कर सकते हैं।”
ये क्या मांग लिया कृष्ण तुमने? प्राण मांग लेते एक बार को लेकिन ये क्या? वादा तो किया जा चुका था!
और उसके बाद राधा कृष्ण के विरह में सिर्फ उदास हुई, व्याकुल हुई, यहां तक कि विक्षिप्त भी हुई…! प्रतिज्ञा का विधिवत पालन हुआ।
आंखे पत्थर हो गई लेकिन आंसू का एक कतरा नही निकलने दिया राधा ने!
कृष्ण जाते जाते राधा से रोने का अधिकार भी छीन ले गए, हां नही छीन पाए तो राधे का कृष्ण के प्रति अनहद, असीमित, अनंत प्रेम जिसको छीनने की क्षमता स्वयं कृष्ण में भी नही है।
जय श्रीराम
Radhe Radhe
जय श्री राम