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भगवान से वार्तालाप- संवाद करे

#भगवान से वार्तालाप- संवाद करे #अपनी वेदना, #अपनी हंसी सुनाए #कल्पना के गीत #सुर ताल #अपना पिता #सखा #पुत्र #मित्र #मेंटोर #गाइड #प्रसन्न #पुण्य कर्म #ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः #जय श्रीराम

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भगवान को क्या समझते हो? वो बहुत सख्त हैं? सीरियस रहते हैं? डरते हो उनसे? यदि हां तो भाई तुम अभी नीरस हो।  हां सही सुना, नीरस हो तुम। क्यों सोचते हो कि भगवान कठोर हैं? क्यों कतराते हो? क्यों दीपक, डूप, फूल और नैवेद्य तक सीमित कर रखे हो उनको? कभी अपने मन की सब बात बताए हो उनको? अपनी वेदना, अपनी हंसी सुनाए हो उनको?

संकोच लगता है? क्यों भाई! संकोच कैसा? कुचल दो इस संकोच को। जाओ, बैठो बात करो। अरे करो तो.. हां हां कोशिश तो करो, अरे यकीन करो नजरिया बदल उठेगा तुम्हारा, एक बार बोल कर देखो बार बार बोलने को मचल उठोगे। अच्छा अब एक काम करो, उठाओ उसे, बैठाओ अपने अंक में और सुना डालो अपने कल्पना के गीत। उसको तुम्हारे सुर ताल से मतलब नही है, वो बस सुनना चाहता है तुम्हारे मन को तुम्हारी जुबानी।

देखो उसे भगवान की तरह मत रखो, उसे अपना पिता, सखा, पुत्र, मित्र, मेंटोर, गाइड बनाओ। वो तुम्हारे दीपक और मिठाई का भूखा नही है उसको बस खेलना है तुम्हारे साथ क्योंकि तुम उसकी सबसे प्यारी रचना हो। उसकी बनाई इस छोटी दुनिया से खेलकर इतना प्रसन्न होते हो तो एक बार दुनिया बनाने वाले के साथ भी खेलकर देखो…

अंत मे मैं कहूंगा कि, भगवान के डर से पुण्य कर्म न करो अपितु भगवान को प्रिय ही पुण्यकर्म है ये सोच पुण्य करो। भगवान का डर नही भगवान से प्रेम होना जरूरी है वो भी इच्छापूर्ति के लिए नही क्योंकि इच्छाएं तो मृत्य शैय्या पर भी अधूरी ही रहती है।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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