एक बार परमपिता परमात्मा ने सभी को भोजन के लिए निमन्त्रण दिया। भोजन में 56 प्रकार के पकवान और 108 प्रकार के फल आदि रखे हुए थे।
जिनको निमन्त्रण मिला सारे लोग तमो गुणी संस्कार वाले व्यक्ति थे और भोजन एक नियम से खाना था। तो सभी भोजन कक्ष में जाये उसके पहले उनके दोनों हाथों में तीन फुट की लकड़ी का डण्डा बाँध दिया गया, जिससे उनके हाथ मुड़ न सके।
सभी मेहमान भोजन कक्ष में गये और इतना स्वादिष्ट भोजन और फल देख कर सब के मुँह में पानी आ गया और सब ने अपने मुख की तरफ हाथ मोड़ा तो लकड़ी के कारण हाथ नहीं मुड़ सका और भोजन पीछे वाली पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर अथवा आगे की पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर गिरा। सबके कपड़े आदि ख़राब हो गये।
जिससे वे क्रोधित होकर आपस में लड़ने लगे, एक – दूसरे को अपशब्द बोलने लगे और कोई कोई तो हाथपाई भी शुरू कर दी। भोजन कक्ष बदल कर संग्राम का मैदान हो गया था, सभी जगह भोजन बिखर गया था और सभी मेहमान भूखे ही रह गये। ये सब आत्माये तमो गुणी संस्कारवाली होने के कारण भोजन कक्ष संग्राम कक्ष बना।
अब परमात्मा ने सोचा चलो एक और बार प्रयोग करके देखते है। फिर परमात्मा ने अपने दूतों को भेज कर भोजन कक्ष खाली करवाया। और दूसरे दिन दूसरे समुदाय को बुला कर उसी तरह हाथ बाँधकर भोजन कक्ष में भेज दिया।
सुंदर स्वादिष्ट भोजन को देख कर उनको भी खाने कि इच्छा होने लगी परन्तु खाये कैसे ? इस पर सोच चलने लगा। ये सभी सतो प्रधान संस्कारों वाले व्यक्ति थे, इस लिए उन्होंने धैर्य से विचार किया। उनका हाथ अपने मुँह की तरफ तो मुड़ ही नही सकता था परन्तु दूसरे की तरफ तो बिना मोड़े ही जा सकता था। इस लिए उन्होंने प्रेम और स्नेह से, सहयोग भावना से अपने हाथ में चम्मच लेकर एक – दूसरे को खिलाना शुरू किया और सभी ने अपने को तृप्त किया।
उनकी सहयोग भावना से न तो भोजन ख़राब हुआ और न ही भोजन कक्ष ख़राब हुआ और सभी भोजन खाकर तृप्त भी हुए।
शिक्षा-जीवन में सुख पाने के लिए एक दूसरे का सहयोग चाहिए और जीवन को सफल बनाने के लिए भी हम सब को एक दूसरे को सहयोग देना और लेना चाहिए।
इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है सहयोग से होगा सर्वोदय, सहयोग करो सहयोग करो..!!
जय श्रीराम
Jai shree Ram
जय श्रीराम
अति उत्तम।
जय श्रीराम