नीचे फोटो में प्रभु ने जिसका हाथ पकड़ा है, वो माता सीता नहीं बल्कि ‘आप’ हैं हम है।
क्यों…✍️
क्यूँकि माँ सीता की तरह आप भले ही अपने माँ-पिता के सबसे प्यारे हों लेकिन ये संसार ‘वनवास’ बनकर परीक्षा लेगा ही। हम भले ही प्रभु के सहगामी हों लेकिन फिर भी काल आपके प्रिय लोगों का ‘हरण’ करेगा ही। हम भले ही निष्कपट हों लेकिन लोग ‘संशय’ करेंगे ही। हम भले ही कर्मयोगी हों लेकिन समय ‘प्रतीक्षा’ करवाएगा ही और हम भले ही विवाद से दूर हों लेकिन संसार विवाद, शत्रु एवं ‘दुःख’ देगा ही।
हमें बस ये स्मरण रखना होगा कि माँ सीता कोशलपुर से वनवास के लिए भले ही पैदल निकली थीं लेकिन लौटी पुष्पक विमान से।
शिक्षा-: इसलिए जब भी हमे लगे कि हम ‘समस्याओं की अशोक वाटिका’ में अकेले पड़ गए हैं तो बस विश्वास के अपने हाथ को उठा दीजियेगा, राम थाम ही लेंगे।
जय श्रीराम