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नये जमाने की बहू

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दीपक की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नई नई नोकरी लगी थी। अब घर वाले चाहते थे कि एक अच्छी सी लडक़ी देख के उसकी शादी कर दी जाए। दीपक के घर परिवार में उसकी माँ , बड़ा भाई नवीन भाभी रश्मि, बहन रीतू, बुआ सरला ओर दादी उमा रहते है। पिता जी की मृत्यु तभी हो गई थी जब दीपक 10वी में था।

वैसे तो दीपक के लिए बहुत रिश्ते आने शुरू हो गए थे पर दीपक का मन तो कही और ही लगा था, वो हर रिश्ते में कोई न कोई बुराई निकाल कर मना कर देता था। तंग आकर भाभी ने पूछ ही लिया “भैया अगर कोई और हो पसंद तो बता दो, क्यों घर वालो को ओर लडक़ी वालो को परेशान कर रहे हो।

दीपक जान गया की अब सही वक्त आ गया है घर वालो को संध्या के बारे में बताने का। संध्या अपनी पढ़ाई पूरी कर के फ़ैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स कर रही है। घर की इकलौती लड़की , पिता पुलिस डिपार्टमेंट में उच्च पद पर है, पर बचपन मे ही माँ का साया सर से छिन गया था। संध्या ओर दीपक की मुलाकात का किस्सा भी बहुत रोचक है, दीपक जहा बहुत ही शांत स्वभाव का है वही संध्या बहुत की चंचल स्वभाव की है। दोनों की मुलाकात एक फ्रेंड की शादी में हुई थी, बस तभी से वो दीपक के दिल मे बस गई।

दीपक अपने दोस्त अमन की तरफ से और संध्या लड़की वालों की तरफ से यानी कि गामिनी की सहेली थी। अमन ने ही गमनी को बोल के दोनों की बात करवाई। धीरे धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनो में तय था कि जैसे ही दीपक को नोकरी मिल जाती है वैसे ही वो दोनों शादी की बात करेंगे।

आज वो टाइम आ गया था। दीपक ने अपने घर मे संध्या के बारे में बताया, संध्या से तो किसी को परेशानी नही थी पर उन्हें ये डर था कि इतने अमीर बाप की बेटी कैसे इस परिवार की जिम्मेदारिया संभालेगी। दोनों बच्चों की मर्ज़ी से शादी भी तय हो गई। संध्या और दीपक दोनो बहुत खुश थे आज वो शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे।

शादी के बाद संध्या घर में आई। सब ने खुशी-खुशी उसका स्वागत किया। सारी रस्मे हो गई लेकिन संध्या की नज़र दीपक की माँ को ही खोज रही थी, बिन माँ की बेटी दीपक की माँ में अपनी माँ को तलाशना चाह रही थी पर माँ का कही अता-पता नही था। संध्या ने ये सोच के तसल्ली दी खुद को कि हो सकता है माँ घर के कामों में व्यस्त होगी।

दूसरे दिन सत्यनारायण की कथा होनी थी, शादी के बाद दोनों पति-पत्नी को साथ मे पूजा में बैठना था। संध्या नहा-धो कर पूजा में बैठने के लिए तैयार होने लगी। उस वक्त भी सोच रही थी कि अगर माँ जी आ जाए तो मेरी थोड़ी मदद कर देंगी साड़ी पहनने में। तभी बुआ जी ऑडर देती हुई आई कि जल्दी से तैयार हो कि नीचे आओ। संध्या जैसे-तैसे साड़ी पहनी और तैयार हो कर पूजा में बैठने आ गई। उस समय भी वो अपनी सास को ही खोज रही थी।

उसने दीपक से पूछा “मम्मी जी दिखाई नही दे रही कहा है वों” तभी दीपक के बोलने से पहले ही बुआ जी बोल पड़ी “संध्या तुम्हारी सासूमाँ अपने कमरे में है, ऐसे शुभ काम मे विधवाओं को शामिल नही किया जाता”

ये सुनते ही संध्या को बहुत गुस्सा आया वो तुरंत अपनी सास के कमरे में जा कर उनका हाथ पकड़ कर पूजा वाले स्थान पर ले आई। दीपक की माँ ने संध्या को बहुत मना किया लेकिन वो बिल्कुल नही मानी। बुआ जी संध्या की इस हरकत पर बहुत गुस्सा हुई “हे भगवान ये लड़की आते के साथ अपनी मनमानी शुरू कर दी, अरे कोई शर्म हया है या नही ये कोई ना कोई अनहोनी करवा के ही रहेगी घर मे। बड़ो की बातों में और रीति-रिवाजों में दखल देना यही सिखाया गया है क्या तुम्हारे घर मे” पंडित जी भी घोर कलयुग कह कर अपनी जगह से उठ गए।

इतने में संध्या की जेठानी भी बोल पड़ी-“देख लो नए जमाने की बहु ले कर आये है अब इस घर के तौर-तरीके बदलने वाले है, इसके पिता पुलिस में है तो अब ये हमे भी इशारों पर नचायेगी” सब की बातें सुन कर संध्या ने सब से कहा -“चुप रहिये आप सब, ऐसे अंधविश्वास को घर की रीत का नाम दे रहे हो। एक माँ के जीवन की सबसे बड़ी खुशी होती है जब उसके बेटे या बेटी की शादी होती है, आज आप माँ को उस खुशी से ही दूर कर दे रहे हो। अरे कितनी मन्नते मांगी होंगी माँ ने अपने बेटे की खुशी के लिए तो उनके कारण घर मे अनहोनी कैसे हो सकती है। पिताजी के जाने के बाद वैसे ही माँ अंदर ही अंदर कितना घुट रही होगी और आप लोग उन्हें खुश रखने की बजाय उनकी खुशियां छीन रहे हो। मेरी माँ की मृत्यु बचपन मे ही हो गई थी फिर भी मेरे पापा हर पूजा-पाठ में शामिल होते थे उनके लिए तो ऐसा कोई नियम नही था। क्या ये नियम सिर्फ औरत के लिए ही बना है। और हाँ मैं अपने पिता की नौकरी के बल पर नही बोल रही हु ऐसा, मेरे पिता ने मुझे बहुत अच्छे संस्कार दिए है।

मैं इन सब अंधविश्वास पर विश्वास नही रखती। अगर इसे नए जमाने की बहू कहते है तो मैं हूं नए जमाने की। फिर उसने अपनी सास से कहा -“बचपन मे माँ के चले जाने के कारण मुझे हमेशा से ही एक माँ की जरूरत थी, मुझे लगा कि आप के रूप में मुझे माँ मिलेगी, मैंने अपनी माँ को तो नही देखा लेकिन आप ही मेरे लिए असली माँ हो आप मेरे हर सुख-दुख में मेरे साथ रहोगी। आप की दुआ और प्यार हमे हर अनहोनी से बचा लेगा।”

संध्या ने अपनी सास के पैर छुए सास ने भी अपनी बहु को गले से लगा लिया। संध्या की बातों ने सब के आंखों में लगी अंधविश्वास की पट्टी को हटा दिया था।

फिर से पूजा शुरू हुई माँ के साथ। संध्या और दीपक अपने आने वाले समय के लिए भगवान की पूजा कर रहे थे और माँ आँखों मे आंसू और दिल मे सुकून लिए अपनी नए जमाने की बहू को देख रही थी।

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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