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लक्ष्मी जी के पग

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एक लड़का एक जूतों की दुकान में आता है, गांव का रहने वाला था, पर तेज़ था। उसका बोलने का लहज़ा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा हुआ लग रहा था। उम्र लगभग 22 वर्ष का रहा होगा । दुकानदार की पहली नज़र उसके पैरों पर ही जाती है। उसके पैरों में लेदर के शूज थे, सही से पाॅलिश किये हुये।

दुकानदार — “क्या सेवा करूं ?”

लड़का — “मेरी माँ के लिये चप्पल चाहिये, किंतु टिकाऊ होनी चाहिये !”

दुकानदार — “वे आई हैं क्या ? उनके पैर का नाप ?”

लड़के ने अपना बटुआ बाहर निकाला, चार बार फोल्ड किया हुआ एक कागज़ जिस पर पेन से  आऊटलाईन बनाई हुई थी दोनों पैर की !

वह लड़का बोला…”क्या नाप बताऊं साहब ?

मेरी माँ की ज़िन्दगी बीत गई, पैरों में कभी चप्पल नहीं पहनी। माँ मेरी मजदूर है,  मेहनत कर-करके मुझे पढ़ाया, पढ़ कर, अब नौकरी लगी। आज़ पहली तनख़्वाह मिली है। दिवाली पर घर जा रहा हूं, तो सोचा माँ के लिए क्या ले जाऊँ ? तो मन में आया कि अपनी पहली तनख़्वाह से माँ के लिये चप्पल लेकर आऊँ !”

दुकानदार ने अच्छी टिकाऊ चप्पल दिखाई, जिसकी आठ सौ रुपये कीमत थी। “चलेगी क्या ?” आगन्तुक लड़का उस कीमत के लिये तैयार था ।

दुकानदार ने सहज ही पूछ लिया — “कितनी तनख़्वाह है तेरी ?”

“अभी तो बारह हजार, रहना-खाना मिलाकर सात-आठ हजार खर्च हो जाएंगे है यहाँ, और तीन हजार माँ के लिये !.”

“अरे !, फिर आठ सौ रूपये… कहीं ज्यादा तो नहीं…।”

तो बात को बीच में ही काटते हुए लड़का बोला — “नहीं, कुछ नहीं होता !”

दुकानदार ने चप्पल बाॅक्स पैक कर दिया। लड़के ने पैसे दिये और ख़ुशी-ख़ुशी दुकान से बाहर निकला । पर दुकानदार ने उसे कहा — “थोड़ा रुको !”  साथ ही दुकानदार ने एक और बाॅक्स उस लड़के के हाथ में दिया

      “यह चप्पल माँ को,  तेरे इस भाई की ओर से गिफ्ट । माँ से कहना पहली ख़राब हो जायें तो दूसरी पहन लेना, नँगे पैर नहीं घूमना और इसे लेने से मना मत करना !”

दुकानदार ने एकदम से दूसरी मांग करते हुए कहा– “उन्हें मेरा प्रणाम कहना, और क्या मुझे एक चीज़ दोगे ?”

“बोलिये।”

“वह पेपर, जिस पर तुमने पैरों की आऊटलाईन बनाई थी, वही पेपर मुझे चाहिये !” वह कागज़, दुकानदार के हाथ में देकर वह लड़का ख़ुशी-ख़ुशी चला गया ! वह फोल्ड वाला कागज़ लेकर दुकानदार ने अपनी दुकान के पूजा घर में रख़ा, दुकान के पूजाघर में कागज़ को रखते हुये दुकानदार के बच्चों ने देख लिया था और उन्होंने पूछ लिया कि — “ये क्या है पापा  ?”

दुकानदार ने लम्बी साँस लेकर अपने बच्चों से बोला –“लक्ष्मीजी के पग लिये हैं बेटा !! एक सच्चे भक्त ने उसे बनाया है, इससे धंधे में बरकत आती है !”

शिक्षा:-मां तो इस संसार में साक्षात परमात्मा  है ! बस हमारी देखने की दृष्टि और मन का सोच श्रृद्धापूर्ण होना चाहिये ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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