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प्रभु-इच्छा

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एक महिला किराने की दुकान पर ख़रीदी करने के लिए गई । साथ छोटा बच्चा भी था। जब महिला ख़रीदी कर रही थी तब उसका बालक व्यापारी के सामने देखकर हंस रहा था। व्यापारी को बालक निर्दोष हंसमुख और ख़ूब ख़ूब प्यारा लग रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि इस बालक की हँसी उसके पूरे दिन की थकान उतार रही है

व्यापारी ने उस नन्हें से बालक को अपने पास बुलाया बालक जैसे ही व्यापारी के पास आया उसने नौकर से चोकलेट का डिब्बा मँगवाया उसने डिब्बा खोल कर उसे बालक की ओर आगे किया ओर बोला- “बेटा तुझे जितनी चोकलेट चाहिए तू उतनी इस डिब्बे में से लेले।”

बालक ने उसमें से चोकलेट लेने से मना कर दिया। व्यापारी बालक को बार-बार चोकलेट लेने को बोलता रहा और बालक ना करता रहा।

बालक की माता दूर खड़ी यह पूरा घटनाक्रम देख रही थी।

थोड़ी देर के बाद व्यापारी ने ख़ुद डिब्बे में हाथ डालकर मूठी भरकर चोकलेट बालक को दी बालक ने दोनो हाथ का खोबा बनाकर व्यापारी द्वारा दी गई चोकलेटों को ले लिया ओर व्यापारी का आभार मानते हुए वह उछलते कूदते माँ के पास  गया।

दुकान में से ख़रीदारी करने के बाद माँ ने बालक से पूछा- “बेटा तुझे वह अंकल चोकलेट लेने का बोल रहे थे तो भी तू  चोकलेट क्यों नहीं ले रहा था?”

लड़के ने ख़ुद के हाथ को आगे बढ़ाते हुए कहा-” देखो माँ!

अगर मैंने मेरे हाथ से चोकलेट ली होती तो मेरा हाथ बहुत छोटा है, तो मेरे हाथ में बहुत कम चोकलेट आती परंतु अंकल का हाथ बड़ा था वो देते तो ढेर सारी चोकलेट आयी और मेरा पूरा खोबा भर गया।”

हमारे हाथ से ऊपर वाले के हाथ बहुत बड़े हैं और उनका दिल भी बहुत बड़ा है। इसलिए उनसे माँगने के बजाय वो क्या देने वाले हैं वह उन पर छोड़ दीजिए।

शिक्षा:- हम अगर स्वयं कुछ भी लेने जाएँगे तो छोटी सी मुट्ठी भराएगी। परंतु जब ईश्वर के ऊपर छोड़ेंगे तो हमारा पूरा खोबा भर जाएगा। इतना मिलेगा।।

जय श्रीराम

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Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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