घने पेड़ों की छाया में शेरों का एक झुण्ड आराम कर रहा था। धूप तेज थी परन्तु मन्द मन्द हवा चल रही थी।इस विशाल जंगल में तरह – तरह के छोटे -बड़े जानवर थे पर जंगल पर राज तो शेरों का ही था। शेर के इस झुण्ड में कई शेरनियां थी। तीन नन्हें शावक झुण्ड के लिए खास थे।
पेड़ों की छाया में झुण्ड का मुखिया शेर लेटा था, शेरनियां भी ऊंघ रही थी पर चौकन्ना थी। नन्हा शावक बगल में मस्ती कर रहा था। कभी वह शेर की पीठ पर चढ़ जाता तो कभी शेर के कान खींच कर इठलाता।शेर अपनी बंद आंखें खोलकर एक नज़र उन्हें देखता फिर आंखें बंद कर सो जाता या फिर शावक को प्यार से आहिस्ता-आहिस्ता चाटकर दुलराता। बच्चों से उसे इतना प्यार था कि अपनी नींद में खलल पड़ने के बावजूद न तो वह उस पर गुर्राता और न ही पंजे से उन्हें दूर भगाने की कोशिश करता। अलबत्ता अपनी पूंछ उठाकर कुछ संकेत देने की असफल कोशिश जरूर करता।
यूं तो जंगल में शेरनियां ही अधिकतर शिकार किया करती हैं लेकिन अपने नन्हें एवं प्रिय शावक के लिए अक्सर यह शेर हिरण का शिकार कर स्वदिष्ट और मुलायम गोस्त लाया करता। शावक को भी हिरण का गोस्त अत्यधिक पंसद था। दिन बीतते गये। शावक बड़े और जवान हो रहे थे,पर उनकी शोखियां अभी भी उनके पास बरकरार थी। शेर के साथ उनका खेलना उसी तरह अब भी बदस्तूर जारी था। उनकी बदमाशियां उम्र के साथ थोड़ी अवश्य बढ़ गयी थी। इधर शेर उम्र के ढलान पर था।
एक दिन जब झुण्ड भरी दोपहर में पेड़ की छाया में आराम कर रहा था तो उनमें से एक शावक ने जिद की— मुझे काले हिरण का गोस्त खाना है। ना चाहते हुए भी बूढ़ा शेर अपने जवान हो रहे शावक के लिए शिकार पर निकल पड़ा। काफी मशक्कत के बाद उसने हिरण का शिकार तो किया लेकिन काला हिरण उसके हाथ नहीं लगा । शेर अपने शिकार को मुंह में दबाए शावक के निकट आया परन्तु यह क्या? शिकार देखते ही शावक की त्योरियां चढ़ गयी, आंखें लाल हो गयीं। उसने गुर्राकर कहा–मैंने तुम्हें काले हिरण के लिए कहा था, न कि इसके लिए और तुम इस साधारण हिरण का शिकार कर आ गये।
शेर को अपने जवान शावक, जिसे कभी वह दिल-ओ-जान से प्यार करता था,का यह लहजा जरा भी पसंद नहीं आया परन्तु परिस्थिति की नजाकत को समझकर वह चुप रहा। उसकी चुप्पी ने जवान शावक को और भी भड़का दिया। उसने बूढ़े हो रहे शेर पर हमला बोल दिया । जवान शेर बूढ़े शेर पर भारी पड़ रहा था। शेर काफी दुखी था। लहुलुहान हो कर वह एक किनारे जाकर बैठ गया। आंखों से आंसू बह रहे थे। आंखों में आंसू लिए वह सोचने लगा – जिन बच्चों के लिए मैं ने सब कुछ किया, उनकी खुशी में ही अपनी खुशी ढूंढता रहा ता-उम्र,आज उसी ने मेरे साथ ऐसा सलूक किया।
उसके दिल पर गहरी चोट लगी। वह मर्माहत था। और एक दिन बूढ़ा शेर झुण्ड छोड़कर चुपचाप कहीं दूर चला गया।
जवान शेर अपनी जवानी के नशे में चूर उधम मचा रहा है अब पूरे जंगल में, शायद यह सोच कर कि कभी वह बूढ़ा नहीं होगा। “जंगल की यह सच्चाई, इन्सानों के लिए सबक “
शिक्षा:- हमारे माता-पिता और शिक्षा बूढ़े शेर की भांति है, हमे योग्य बनाया है। जिन्होंने सदैव हमारी खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढ़ी है, हमारे सुख के लिए सदैव गत्पर रहे है। हमे उन्हें सदैव उचित आदर और सम्मान देना चाहिए
जय श्रीराम
