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राधे-राधे

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केतकी घर के आंगन में अपने पाँच साल के बेटे को नहला रही थी और साथ-साथ में बहुत सुंदर भजन गा रही थी

” राधे राधे रटो चले आएंगे बिहारी राधे राधे रटो चले आएंगे बिहारी” तभी उसको लगा कि घर के आंगन में लगे वृक्ष की ओट से कोई उसको बार-बार देख रहा है। तो उसने देखने की बहुत कोशिश की कि कौन है लेकिन उसको नजर नहीं आ  रहा था लेकिन फिर भी उसको लगता था कि वृक्ष  की ओट में कोई है ।आंगन में बालक को नहला कर जब उसने उस वृक्ष की ओट में से देखा कि 5-6 साल का बालक बहुत ही प्यारा सा सावंला सा वहां खड़ा है। तो केतकी ने कहा कि अरे ओ लल्ला तुम कौन हो? और यहां वृक्ष की ओट में क्या कर रहे हो? तो वह बालक एकदम से रूंआसा सा हो गया और कहने लगा का कि मैं तो आपको देख रहा था कि आप इतने प्यार से अपने बेटे को नहला रही हो और एक मेरी मैया है जो कि मेरा बिल्कुल ध्यान नहीं रखती मैं तो सारा दिन बिना नहाए ही रहता हूं ।तो केतकी को उस बालक की मीठी मीठी और तोतली भाषा की बातें सुनकर बड़ा आनंद आया और उसको कहने लगी अरे ओ लल्ला आओ मैं तुझे नहला दूं तो और उससे पूछने लगी कि बता तेरा नाम क्या है तो वह बालक बोला कि मेरा नाम गोपाला है। मैं जो गांव के बीच में चौपाल है उसके पीछे वाले घर में रहता हूं ।मेरी मैया को तो घर के कामों से ही फुर्सत नहीं।वह मेरा बिल्कुल ध्यान नहीं रखती और साथ में आंखों में आंसू भर लाया । केतकी को उस पर बहुत ही दया  आई और उसकी भोली सी बातें सुनकर बड़ा प्यार आया और वह उसको आंगन में बैठकर  मलमल कर स्नान कराने लगी। तो गोपाला ने कहा कि जैसे तू अपने लल्ला को  नहलाती हो वैसे ही नहलाओ तो केतकी  ने कहा वैसे ही तो नहला रही हूं तो गोपाला ने कहा नहीं नहीं साथ में वो भजन भी गुनगुना ओ तो केतकी  मुस्कुरा पड़ी और साथ में गाने लगी ।

“राधे राधे रटो चले आएंगे बिहारी” उसने गोपाला को बड़ी अच्छी तरह से नहलाकर उसकी आंखों में काजल लगाया बड़ी सुंदर तरह से उसके बालों को संवारा और बोली गोपाला क्या सुबह से कुछ खाया है तो गोपाला बहुत बेचारा सा मुंह बनाकर बोला ना  काकी मेरी मैया को मेरी फिक्र कहां मैंने तो कुछ भी नहीं खाया। केतकी को गोपाला पर बहुत दया आई तो उसने कहा चलो आओ मैं अपने लल्ला को भी खिलाने लगी हूं तुझे भी भोजन करा दूं तो गोपाला जल्दी जल्दी जाकर केतकी की गोद में बैठ गया।केतकी एकदम से हैरान हो गई कि यह बालक कितना नटखट है और  प्यारा है  जो 1 दिन में ही इसने मुझे अपना बना लिया और एक मेरा बालक है जो इसी की उम्र का है उसको तो ऐसी बातें आती ही नहीं ।तो केतकी ने  गोपाला को बहुत प्यार से खाना खिलाया। अब गोपाला बोला काकी  अब मैं घर को जा रहा हूं  मेरी मैया बहुत गुस्से वाली है मैं देर से गया तो बहुत बहुत डांटेगी ।

अब गोपाला जा चुका था ।अगले दिन फिर जब  आंगन में बैठकर केतकी अपने बालक को नहला रही थी तभी उसने देखा कि गोपाला फिर हाथ में एक बड़ी सी पोटली  लेकर और  पोटली के भार से टेढ़ा मेढ़ा होता हुआ पैर पटकता हुआ आ रहा है और उस पोटली को केतकी की गोदी में रखता हुआ बोला यह लो काकी तो केतकी  एकदम से हैरान हो गई और  बोली  अरे गोपाला इसमें क्या है। तो गोपाला बहुत बेचारा सा मुंह बनाकर बोला-अरे काकी मैं क्या बताऊं मेरे पास तो डालने के लिए कोई भी वस्त्र ही नहीं बचा। क्योंकि मेरी मैया तो इतनी आलसी है कि वह तो मेरे  वस्त्रों को भी नहीं धोती इसलिए आप ही मेरे वस्त्रों  को धो दो।  केतकी उसकी बातें और मासूमियत को देखकर मुस्कुरा पड़ी और जब उसने पोटली को खोला तो उसमें बहुत ही प्यारी प्यारी धोती कुर्ता लंगोटी  सब पड़े हुए हैं और  उन वस्त्रों  में से बहुत ही सुंदर खुशबू आ रही है और कपड़े एकदम से साफ हैं। केतकी इतने सुंदर साफ कपड़ों को देखकर गोपाला को बोली गोपाला यह तो कपड़े बिल्कुल साफ है  और इसमें से तो इतनी सुंदर खुशबू आ रही है। लगता नहीं कि ये कपड़े मैले हैं तो गोपाला आंखें तरेरता हुआ बोला अरे नहीं काकी आप नहीं जानती मेरी मैया तो कपड़े मेरे धोती नहीं उसको तो अपने श्रृंगार  की पड़ी होती है जो उसने इत्र लगाया होगा वह जो उसके हाथों में लगा होगा वहीं उसने मेरे कपड़ों से पौंछ लिया होगा यह उसी की खुशबू है। केतकी तो उस कपड़ों की खुशबू से निहाल होती जा रही थी। तो गोपाला ने पूछा क्या आप मेरे वस्त्रों को   धो दोगी ना? तो  केतकी बोली हां हां धो दूंगी। तो गोपाला बोला चलो मुझको स्नान करवाओ तो केतकी ने मुस्कुराकर गोपाला को बड़ी अच्छी तरह से स्नान कराकर उसके बालों को संवारा आंखों में काजल लगाया और उसको बड़े प्यार से अपनी गोदी में बिठा कर खाना खिलाया। ऐसे ही कितने दिन गोपाला केतकी के घर आता रहा और केतकी अपने लाला के साथ साथ उस गोपाला का भी पूरा ध्यान रखती । केतकी की सास कुछ दिन के लिए बाहर गई हुई थी। लेकिन आज अचानक से वह वापस आ गई आते ही उसने जब घर की ऐसी हालत देखी कि घर बिल्कुल बिखरा पड़ा था कोई कपड़ा कहां था कोई कपड़ा कहां था क्योंकि केतकी ने वास्तव में ही गोपाला का ध्यान रखते रखते घर का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा था । आते ही सास का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और वह चिल्लाते हुए बोली तू कैसी बहू है जो घर में इतनी गंदगी मचाई हुई है । केतकी ने जब घर को देखा तो घर वाकई में बहुत गंदा हुआ हुआ था। तो वह सास से माफी मांगते हुए बोली मैं अभी सारा घर साफ कर देती हूं लेकिन सास  उस पर चिल्लाती रही ।घर में इतना गंदा  पड़ा था कि केतकी को सारा दिन लग गया साफ करते करते । सास  के घर वापस आ जाने से सास उसको हर बात पर  टोकती कभी कोई काम कहती कभी कोई काम कहती । अब तो केतकी को सांस लेने की भी फुर्सत नहीं रहती। वह अपने लाला को भी झटपट स्नान  करवाती । वह जब भी कोई  काम करती उसका ध्यान गोपाला में ही लगा रहता ।वह घर के आंगन में 100 बार जाकर देखती की आज गोपाला नहीं आया। गोपाला अपने कपड़े वहीं छोड़ गया था वह 100 बार उन कपड़ों को संदूक से निकाल कर देखती जो कि उसने धोकर अंदर रख दिए थे और वह उन कपड़ों को सूंघती क्योंकि उसमें अभी भी बहुत अच्छे इत्र की खुशबू आ रही थी और  वह उन कपड़ों को अपने अंक में भींच लेती और उसको ऐसे लगता कि वह गोपाला को गले लगा रही है । क्योंकि ना जाने गोपाला से उसको क्यों इतना प्यार पड़ गया था ।उसके ना आने से वह बार-बार जाकर बाहर देखती लेकिन गोपाला ना आता वह 100 बार उस वृक्ष के चक्कर काटती कि शायद गोपाला इस वृक्ष की ओट में कहीं छिपा हो। लेकिन वह नहीं होता अब तो केतकी को गोपाला की बहुत याद आने लगी। उस को ना जाने अब क्या हो गया था अब वह गोपाला के विरह में तड़पने लगी और उसके हृदय में विरह की अग्नि इतनी ज्यादा प्रज्वलित हो गई कि उस  अग्नि की तपन अब  गोपाला को भी  महसूस होने लगी  उसकी विरह वेदना को देख कर एक दिन गोपाला उसके स्वपन में आया लेकिन केतकी को ऐसा लगा कि वह स्वपन नहीं देख रही बल्कि गोपाला ही उसके पास है तो उसने जल्दी से गोपाला को पकड़ा और उसको अपने अंक में भींचकर जोर जोर से चूमने लगी और कहने लगी क्या बात है गोपाला इतने दिन हो गए तू मुझे मिलने आया क्य।क्या अब तेरी मैया तुझे मुझसे ज्यादा प्यार करती है। तो गोपाला हंसकर बोला नहीं काकी मैं तो रोज तेरा भजन सुनकर भागा भागा आता था जो तू भजन गाती थी राधे राधे रटो चले आएंगे बिहारी और वह बिहारी कोई नहीं मैं खुद ही हूं। क्योंकि जहां पर र नाम होता है वहां पर मैं भागा चला आता हूं। और कितने दिनों से तूने यह भजन गाया ही नहीं इसलिए मैं तेरे पास नहीं आया क्योंकि जो भी लोग राधा राधा जपते हैं तो मैं वहां भागा चला आता हूं।उसकी जीभा प मैं स्वयं नृत्य  करता हूं। इसलिए जब जब राधा राधा जपोगे  तब तब मुझे  राधा नाम  संग पाओगे। केतकी अब एकदम से हड़बड़ा कर उठी और कितनी देर वह उठकर सुन्न  होकर अपनी चारपाई पर बैठी रही  स्तब्ध थी क्या वास्तव में स्वयं बिहारी जी मेरे पास आते थे उन्होंने मेरे हाथों से इतनी सेवा ली  यह सोच कर केतकी को यह समझ नहीं आ रहा था कि मैं खुश होंऊ,  गोपाला के विरह में तड़पू  राधे राधे बोलु क्या करू । केतकी तो बावंरी सी हो गई थी। उसको समझ नहीं आ रहा था वह क्या करें ।लेकिन अब उसको एक बात समझ आ रही थी कि अगर  गोपाला को पाना है तो मुझे राधे राधे जपना होगा ।

षिक्षा:-इसलिए हमें अगर ठाकुर जी को पाना है तो राधे राधे बोलना होग और ठाकुर जी खुद भागे चले आएंगे इसलिए सब मेरे साथ मिलकर बोलो राधे राधे

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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